उपन्यास >> दूसरा पक्ष दूसरा पक्षतसलीमा नसरीन
|
0 5 पाठक हैं |
धर्म परिवर्तन करने का अधिकार सबको होना चाहिए। शिशु किसी धार्मिक विश्वास के साथ पैदा नहीं होता। उस पर उसके माँ-पिता का धर्म लाद दिया जाता है। सभी बच्चे विवश होकर अपने माँ-पिता के धर्म को ही अपना धर्म मान लेते हैं। अच्छा तो यह होता कि बच्चे के बड़े होने पर, उसके समझदार होने पर उसे पृथ्वी के समस्त धर्मों के बारे में बताया जाता, और फिर वह अपनी इच्छा और विवेक से अपने धर्म का चयन करता अथवा अनिच्छा होने पर नहीं करता। जब राजनीति में दीक्षित होने के लिए बालिग होना ज़रूरी है, तो धर्म से जुड़ने के लिए भी ऐसा कोई प्रावधान होना चाहिए। आज न तो पहले की तरह साम्प्रदायिक दंगे होते हैं, न ही मृतकों का आँकड़ा पहले जितना होता है। आज के लोग जानते हैं कि लड़कियों से बदसलूकी करना गैर-कानूनी है। कन्या भ्रूण-हत्या की घटनाओं की लोग आज निन्दा करते हैं। समाज में एक समय सवर्णों का अत्याचार काफ़ी होता था, अब इन पर काफ़ी हद तक अंकुश लगा है। कई बार ऐसे मामले सामने आते हैं, तो दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होती है। कुल मिलाकर, आज का भारत मानवाधिकार, महिला अधिकार, समता और समानाधिकार में यकीन करता है। यह परिवर्तन एक दिन में नहीं आया है। यह दशकों के संघर्ष का परिणाम है।
भारत में भी कट्टरवादी हिन्दुओं में यह चिन्ता घर कर रही है कि हिन्दू धर्म और संस्कृति कहीं ख़त्म न हो जाये। उनकी आशंका यह भी है कि मुस्लिम कट्टरवाद या इस्लाम ही हिन्दू धर्म की विलुप्ति का कारण होगा। इसलिए धर्म को बचाये रखने के लिए हिन्दू कट्टरवादी भी उसी रास्ते पर चलने का संकेत दे रहे हैं, जिस रास्ते पर मुस्लिम कट्टरवादी पहले ही चल पड़े हैं। भारत में तर्कवादियों को निशाना बनाने की यही वजह है।
– पुस्तक से
|